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गरीब के ग्रह / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

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गरीब के ग्रह बड़ी रहऽ हे
आफत पर आफत
भगवान के भी नै है सराफत
कि गरीब के घटा दै,
चाहे जेल में बंद रक्खै
चाहे रेल में कटा दै
बे मजा के मजा दै,
नै तो बस फाँसी के सजा दै
एतना आदमी भारत में हे,
खाली गरिबके गारत में हे
गरीब के है?
इहो तो पहचान में नै आबऽ हे
जे धरम जात नै जानै
ध्यान में नै आबऽ हे
जे धरम जात नै जानै
ध्यान में नै आबऽ है
जेहे गरीब हे
उहे भगवान के पिछअैने हे है,
अमीर तो भगवान के
पेट में पचैने हे
इहे ले तो
सगरे ऊ
मंदिर बनाबऽ हे
कि गरीब के दुख में
भगवाने जनाबऽ हे
आँख देबो
कान देबो
की नै कबूलऽ हे?
भगवाने तो दुस्मन हे
एकरा नै भूलऽ हे
भगवान के देल ई सजा हे,
कि गरीब गर्त में हे
महतो के मजा हे
गरीब के गर्व कहाँ
भाग के खेल की हे
याद नै रक्खऽ हे
गरीबे के बेटा तऽ
मरऽ हे बिमारी से,
मँहगाई के मार से
गरीबे के देह पर
भूत-प्रेत भरऽ हे
पैसा नै हे तब
बेचारा की करऽ हे
त्राहिमाम, दंडवत,
प्रणाम, नाक घस के
दुख सब सह लेहै
जीवन भर हँस के
कहिया तक
भगवान के
गोड़, में लटकतै सब
कहिया तक
पत्थर पर माथा पटकतै सब
पापी परयाग में
सब
पापी परयाग में
नहाके आबऽ हे,
पैसा हे जेकरा
पाप दहा के आबऽ हे
बात ई गरीब के
समझ में एतै जब,
नै रहतें दुख
पेट भर खैतै तब
जेकर खून पानी हे,
ओकरे जमानी हे
तोसक तकिया पर
आराम जे करऽ हे,
देस के बुड़ाबै के
काम जे करऽ हे
अहे है भला एखने
ओकरे भलाई हे,
भला आदमी के
रोज हाथा पाई हे
अपने में काँय कूँय
कलह रोज होवऽ हे
कारण नै दुढ़ऽ हे कोय
दिल नै टोवऽ हे
आँख मूंद
अंधा धुंध
गहिरा में गिरऽ हे,
भाग भगवान से
दिन कहाँ फिरऽ हे?
दिन दुस्वार हे
जीना हे मोस्किल
फटल-चिटल गुदरी के
सीना हे मोस्किल।