गरुढ़ / तेज राम शर्मा
शांत घाटी के
सन्नाटे को तोड़ता
स्वच्छ आकाश से
दूरदृष्टि वाला गरुड़
टूटता है जेट फाईटर की तरह
और आ बैठता है
मृत पशु के लोथ के पास
अनंत आकाश का स्वामी
पंखों के नीचे शर्म से गर्दन झुकाए
ढूँढता है हड्डियों के बीच
माँस के टुकड़े
धरती पर
ठठरी के पास मंडराते
उन्हीं बोझिल पंखों को
जो खुले आकाश में
चूमते थे बादल
अनमने मन से घसीटते
उभारता है
फूहड़-सी एक लिखावट
वही तुम्हारे पंख
आकाश से होड़ लेते
घुप्प अंधेरी रात में
टूट्ते तारे की तरह
प्रकाशबिद्ध पंखों की नोक से
खुले आकाश में
खींचते हैं प्रकाश रेखा
ओ! बादलों के सखा
शब्दों को तौल कर
सधी गुलेलों की पहुँच से बहुत दूर
उड़ चलो वहीँ
जहाँ तिरते हों अपनी राजसी उड़ान में
सीमाओं के बंधन से स्वतंत्र
उन्मुक्त आकाश में।