भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गर्जन तर्जन से नहीं, चलने वाला काम / पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
Kavita Kosh से
गर्जन-तर्जन से नहीं, चलने वाला काम।
गद्दारों का चाहिए, होना काम तमाम॥
रूह शहीदों की यही, करने लगी सवाल।
और देश के खून में, होने लगा उबाल।
इम्तिहान कब का लिए, दोगे कब परिणाम।
गद्दारों का चाहिए, होना काम तमाम॥
पापी पाकिस्तान को, दो वैसा उपहार।
जैसा उसने है दिया, पुलवामा चित्कार।
जलते तन-मन को मिले, तभी तनिक आराम।
गद्दारों का चाहिए, होना काम तमाम॥
कहें वृद्ध माता-पिता, साफ करो आतंक।
भारत के मृदु गात में, चुभा रहे नित डंक।
चिता धधक कर बोलती, करिए पूर्णविराम।
गद्दारों का चाहिए, होना काम तमाम॥