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गर्ल्स कॉमन रूम / रेखा
Kavita Kosh से
एक उमस भरा दिन
छप्पर के नीचे बहती गरमी
और रेल के थर्ड-क्लास डिब्बे की तरह
खचाखच भरा
यह कॉमन-रूम
एक भद्दी हँसी
एक नख़रीली मुस्कान
रंग-बिरंगे गिलाफ़ों में लिपटे
काले-गोरे शरीर
बोरे में ठूँसी रुई की तरह
बेढंगी
प्रैसड-तहदार बातें
और उनसे उठती
निरन्तर
एक उबक
अचानक
घण्टी का बजना
थर्ड-क्लास डिब्बे का
किसी कस्बाती स्टेशन पर रुकना
किसी दबी हुई बात का
धुँआ बन निकलना
सब कैसा लगता है_
कभी बहुत हल्का
कभी
सीसे-सा भारी
1969