भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गर्वोक्ति / ललन चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
न ऊधो का लिया
न माधो का दिया
न किसी का भला
न बुरा ही किया
चलती रही
साँस जब तक
जिया
इसी तरह
देव-दुर्लभ मनुष्य पर
उसने विभूषित किया।