गर्विन्मत्त
स्तब्ध और मंत्रमुग्ध
खड़ा हूँ पाँच सौ साल पीछे
एक भव्य मीनार पर
हज़ारों हाथियों के अभिवादन स्वीकारता
सुनता हुआ सजीले घोड़ों की
गूँजती टापें
पर कहाँ से आ गईं बीच में
निरीह सैनिकों और
रत्नों से लदी सजी-धजी स्त्रियों
की कराहें?
गर्विन्मत्त
स्तब्ध और मंत्रमुग्ध
खड़ा हूँ पाँच सौ साल पीछे
एक भव्य मीनार पर
हज़ारों हाथियों के अभिवादन स्वीकारता
सुनता हुआ सजीले घोड़ों की
गूँजती टापें
पर कहाँ से आ गईं बीच में
निरीह सैनिकों और
रत्नों से लदी सजी-धजी स्त्रियों
की कराहें?