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गर्वोन्मत, स्तब्ध और मंत्रमुग्ध / हेमन्त शेष

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गर्विन्मत्त

स्तब्ध और मंत्रमुग्ध

खड़ा हूँ पाँच सौ साल पीछे

एक भव्य मीनार पर

हज़ारों हाथियों के अभिवादन स्वीकारता

सुनता हुआ सजीले घोड़ों की

गूँजती टापें

पर कहाँ से आ गईं बीच में

निरीह सैनिकों और

रत्नों से लदी सजी-धजी स्त्रियों

की कराहें?