गर आग की जगह पानी / राजकुमार कुंभज
ग़र आग की जगह पानी
और पानी की जगह आग रख दी जाए
तो मेरी नींद में तुम्हारे सपने होंगे
और तुम्हारे सपनों में मेरी नींद
यदा-कदा ऎसा भी होता है दरअसल
कि जब चीज़ों की जगह बदल जाती है
तो उनके मतलब भी बदल जाते हैं
जैसे कि मैंने कहा कि सुअर
और तत्काल एक मंत्री हवाई जहाज में उड़ता हुआ दिखाई दिया
जैसे कि मैंने कहा कि नागरिक
और तत्काल एक मच्छर तड़फता हुआ मिला नाली में
जैसे कि मैंने कहा कि प्रेम
और तत्काल पता मिला सुंदरतम क्लोन...
ग़र आदमी की जगह रख दिया जाए
एक गुलाब, एक गुलाब जामुन
और एक गुलाब-गुलाम
तो तमाम उस्तरे का संस्कार गया
समझो कि अतिक्रमण विरुद्ध बुलडोज़र में
मैं थक गया हूँ सच कहते-कहते
मुझे झूठ बोलने के लिए मज़बूर मत करो
आम आदमी के पास मत ले चलो मुझे
मैं डरने लगा हूँ उसके सामने जाने से
आख़िर मैंने किया ही क्या उसके लिए?
लिखी कविताएँ और सो रहा दड़बे में
भटका दर-दर और पाया नहीं कुछ भी
लटका, बिजली के तारों पर भी लटका
मगर हारा हर हाल
जैसे मनुष्य विरुद्ध मवेशी
ग़र आग की जगह पानी
गर पानी की जगह आग रख दी जाए
तो बहुत संभव है कि चीज़ों के अर्थ बदल जाएंगे
तब ठंडे पानी में भी कुछ हो जाएगा।