भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गर कम भी जिया तो क्या ? / जमाल सुरैया / निशान्त कौशिक
Kavita Kosh से
मेरे दियासलाई जलाने के दौरान
हर शै सुर्ख़ थी चेहरे के मानिन्द
मेरे दियासलाई जलाने के दौरान
चुनाँचे हर शक़्ल है मुल्क के मानिन्द
मेरे सिगरेट जलाने के दौरान
क्योंकि हर सिगरेट है क़लम के मानिन्द
मेरे सिगरेट जलाने के दौरान
खिजाँ के दिन थे गीत के मानिन्द
एक कबूतर-सा था मैं मरने के दौरान
अफ़सुर्दगी से पत्ता-पत्ता गोया
एक कबूतर था मैं मरने के दौरान
मूल तुर्की भाषा से अनुवाद : निशान्त कौशिक