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गर कम भी जिया तो क्या ? / जमाल सुरैया / निशान्त कौशिक

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मेरे दियासलाई जलाने के दौरान
हर शै सुर्ख़ थी चेहरे के मानिन्द
मेरे दियासलाई जलाने के दौरान
चुनाँचे हर शक़्ल है मुल्क के मानिन्द

मेरे सिगरेट जलाने के दौरान
क्योंकि हर सिगरेट है क़लम के मानिन्द
मेरे सिगरेट जलाने के दौरान
खिजाँ के दिन थे गीत के मानिन्द

एक कबूतर-सा था मैं मरने के दौरान
अफ़सुर्दगी से पत्ता-पत्ता गोया
एक कबूतर था मैं मरने के दौरान

मूल तुर्की भाषा से अनुवाद : निशान्त कौशिक