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गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ा-कार कौन है / मोहम्मद रफ़ी 'सौदा'

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गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ा-कार कौन है
दिल-दार तू हुआ तो दिल-आज़ार कौन है

नालाँ हूँ मुद्दतों से तेरे साए के तले
पूछा न ये कभू पस-ए-दीवार कौन है

हर शब शराब-ख़्वार हर इक दिन सियाह है
आशुफ़्ता ज़ुल्फ़ ओ लटपटी दस्तार कौन है

हर आन देखता हूँ मैं अपने सनम को शैख़
तेरे ख़ुदा का तालिब-ए-दीदार कौन है

‘सौदा’ को जुर्म-ए-इश्क़ से करते हैं आज क़त्ल
पहचानता है तू ये गुनह-गार कौन है