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गर देखने हैं / विकि आर्य
Kavita Kosh से
गर देखने हैं, सपनों में इन्द्रधनुष
किताब एक कविता की सिरहाने रखना
न जाने कब ज़रुरत आन पडे़
थोड़े बहाने, थोड़े झूठ भी छुट्टे रखना
इक न इक रोज़ वो पलट के आयेगा
उसके हिस्से का दरवाज़ा थोड़ा खुला रखना
इश्क क्या है बस इक पल का तमाशा है
समझ कर ही आतिश मे चिंगारी रखना
मिल जाती है श्रद्धा की अगरबत्तियाँ, प्यार के फूल भी
रुको लाल बत्ती पर तो शीशे ज़रा गिराकर रखना
उखाड़ लाये हो माना जड़ समेत ये जंगली पौधा
लगा न पाओगे गमले में, निगरानी रखना