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गर हालात ने चूस न लिया होता / सरोज परमार
Kavita Kosh से
पिछले तीस सालों से
इसी पगडण्डी पर भागते-दौड़ते
यूँ तो सुनहली फसलों की
झेली है मुस्कान।
जंगली झाड़ों पर खिलते फूलों
से चुराई है नज़र
हवाओं से बिखरते बीजों
बारिशों से अँकुराते पौधों
ने रोकी है डगर
पर इन सबकी अनदेखी कर
भाग रहा हूँ।
ख़्याल आया आज अचानक
कहने को दो कम पचास का हूँ
मालिकों के विश्वास का हूँ
गर हालात ने चूस न लिया होता
मेरा पुरूष
तो कोई नन्हा मेरी अँगुली
थामे संग-संग भाग रहा होता।