भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गलफर में जहर / 21 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँझ के
नेरहिया नें
हुआं-हुआं के मचैलकै शोर
गांव सें भी
ऐलै वैहने आवाज
नेरहिया नें
एक दोसर सें कहलकै
भागै यहां सें
धोखा होय सकै छै
आदमी लागै छै।
ऊ तेॅ ओकरे से लेलकै
फिनू की दैले ऐलै।

अनुवाद:

शाम में
सियार ने
हुआं-हुआं का मचाया शोर
गाँव से भी
आई वैसी ही आवाज
सियार ने
एक दूजे से कहा
भाग यहाँ से
धोखा होसकता है।
आदमी लगता है।
उसने तो उसी से लिया है
फिर वह उसे क्या देने आया है।