भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गळगचिया (51) / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हँसतो हँसतो ही फूल अचाणचूको झड़ग्यो, पानड़ा बेलीताप कर र पूछ्यो आ चानडी मौत कुँनैं स्यूँ आई ? रूँख रो र बोल्यो- कठीनैं स्यूँ बताऊँ ? को आँती रा खोज मंडै न को जाँती रा !