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गवाक्ष से झाँक रहा मधुमास / अर्चना कोहली

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देखो रे अलि! गवाक्ष से झाँक रहा मधुमास
रंग-बिरंगे प्रसूनों से छाया विचित्र-सा उजास।
सरसों के चटकने से खेत हुए आज स्वर्णिम
समस्त दरख़्त हरे-हरे पल्लवों से हैं अप्रतिम॥

रमणीयता देख प्रकृति की मयूर भी प्रफुल्लित
नृत्य देखकर उसका सभी हो गए आहृलादित।
चटक गई इस सुहानी ऋतु में आम्र की मंजरी
पुलकित लग रही कुंज की हरेक ही वल्लरी॥

कानन में अब खिलने लगे हैं लाल से पलाश
मिलने को धरा को लालायित हुआ आकाश।
मलयज समीर से लुभावनी-सी लगती बयार
पीत रंग ओढ़ कुदरत ने दिया प्यारा उपहार॥

कोयलिया भी झाड़ियों में छिप सुनाती राग
कोलाहल से बच्चों के सुशोभित सब बाग।
सुरभि से पुहुप की चहुँ दिशायें रही हैं महक
गेहूँ और जौ की बालियाँ अब रही हैं चटक॥

देख यह दृश्य बदला तितलियों का मिजाज़
अद्भुत-से प्रेम के इस पर्व का प्यारा अंदाज़।
वीणापाणि के स्वागत में हुई है ये सजावट
कुसुमाकर ने तभी की है अद्वितीय बनावट॥