भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गहना के रूप से सोनार के ना मोह बा / आचार्य श्रद्धानन्द अवधूत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
गहना के रूप से सोनार के ना मोह बा
आगी पर ओके गला देला
आ खाँटी सोना के निकालि लेला
नया गहना ओकरा से गढ़ि लेला
केहू के रूप से प्रभु के ना मोह लागे
आत्मा के लेके ऊ रहि जालें
फेरू नया रूप दे देले।

2
साधना कइला से मन मेंही होला,
नाहीं त ऊ बड़ा मोट बनि जाला।
मेंही भइला से मन व्यापक होला,
दूर-दूर के सभ बात ऊ देखेला।
देखला से समझ-बूझ के पैर धरेला
एसे कबहीं ऊ ना गिरेला।
केहू ना ओकरा पर थपरी बजावेला
इज्जत के संगे ऊ दुनिया में रहेला।
मेंही भइला से सभ किछ बुझाला
दोसरा के दुःख-दर्द समझ में आवेला
हरदम ऊ सभकर मदद करेला
सभका में ऊ भगवान के पावेला।