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गहरे सुरों में अर्ज़-ए-नवा-ए-हयात कर / मजीद 'अमज़द'
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गहरे सुरों में अर्ज़-ए-नवा-ए-हयात कर
सीने पे एक दर्द की सिल रख के बात कर
से दूरियों का सैल-ए-रवाँ बर्ग-ए-नामा भेज
ये फ़ासलों के बंद-ए-गिराँ कोई बात कर
तेरा दयार रात मेरी बाँसुरी की लै
इस ख़्वाब-ए-दिल-नशीं को मेरी काइनात कर
मेरे ग़मों को अपने ख़यालों में बार दे
इन उलझनों को सिलसिला-ए-वाक़िआत कर
आ एक दिन मेरे दिल-ए-वीराँ में बैठ कर
इस दश्त के सुकूत-ए-सुखन-जू से बात कर
‘अमजद’ नशात-ए-ज़ीस्त इसी कशमकश में है
मरने का क़स्अ जीने का अज़्म एक सात कर