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तू    तो    एक    बहाना  था
मुझको   धोखा   खाना   था 
मौसम    रोज़   सुहाना   था
उसका    आना - जाना   था
आईना     दिखलाना      था 
उसको    यूँ   समझाना   था
आज   ज़माना   क्या   जाने
मुझसे    एक    ज़माना   था
कबिरा  की  उस  चादर  का 
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मुझको     समझा     मेरे    जैसा
वो  भी   ग़लती   कर    ही  बैठा
उसका   लहजा   तौबा ! तौबा !!
झूठा    क़िस्सा    सच्चा   लगता
महफ़िल- महफ़िल उसका चर्चा
आख़िर   मेरा   क़िस्सा  निकला
मैं   हर   बार   निशाने   पर   था 
वो    हर   बार   निशाना    चूका 
आख़िर     मैं     दानिस्ता   डूबा
तब   जाकर   ये   दरिया   उतरा
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और   सुनाओ   कैसे   हो    तुम 
अब  तक  पहले  जैसे   हो  तुम 
अच्छा  अब   ये   तो  बतलाओ 
कैसे   अपने    जैसे    हो    तुम 
यार   सुनो    घबराते    क्यूँ   हो
क्या   कुछ  ऐसे - वैसे  हो   तुम 
क्या  अब  अपने साथ  नहीं  हो 
तो   फिर   जैसे - तैसे   हो   तुम 
ऐशपरस्ती ?   तुमसे ?  तौबा !!!
मज़दूरी     के    पैसे    हो   तुम