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ग़मज़दा हूँ देख रुसवाई नज़ारों की क़सम / कुमार नयन
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ग़मज़दा हूँ देख रुसवाई नज़ारों की क़सम
रात भर रोता रहा जगकर सितारों की क़सम।
गोलियाँ वादी को छलनी कर रही हैं रोज़ क्यों
ढूंढना होगा सबब तुमको चिनारों की क़सम।
अब बदलना ही पड़ेगा सूरते-हालात को
चुप न बैठो साथियों उजड़े दयारों की क़सम।
जा रहा हूँ छीनकर जन्नत से लाने रोटियां
भूख से लड़ते हुए इन बेसहारों की क़सम।
चल पड़ा उस पार दरिया ग़र्क़ भी कर दे तो क्या
मैं नहीं लौटूंगा हरगिज़ अब किनारों की क़सम।
आ गया हमको हुनर दुश्मन से लड़ने का जनाब
उसके यारों से ही यारी करके यारों की क़सम।
ज़िन्दगी के मोर्चे पर लड़ रहे जो जंग हम
देखना जीतेंगे इक दिन कामगारों की क़सम।