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ग़म-ए-जिगर न दवा-ए-जिगर लेना / सफ़ी औरंगाबादी
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ग़म-ए-जिगर न दवा-ए-जिगर लेना
जिस पसंद करें वो पसंद कर लेना
ख़बर न थी की ये दुनिया है ऐश से ख़ाली
दिन अपनी उम्र के भरने हैं जब तो भर लेना
हुई है ख़ाना-बदोशी ग़म-ए-मोहब्बत की
ज़माना आप से सीखे किसी का घर लेना
तुम्हारी तरह का इक आईने के घर में है
जो हो सके तो ज़रा देखना ख़बर लेना
कोई घिरा है अकेला तेरी अदाओं में
शिकार हाथ से जाने न पाए धर लेना
अगरचे उस की जुदाई की दिल को ताब नहीं
जो आ पड़ी है तो अब सब्र ओ शुक्र कर लेना
हमारे दाव हमीं पर चलाए जाते हैं
भला वो और किसी बात का असर लेना
दुआ हमारी दुआ क्या दुआ कहाँ की दुआ
नहीं है चीज़ ये लेने की तुम मगर लेना
ख़ुदा ने सब्र दिया लाख लाख शुक्र ‘सफ़ी’
किसी दिन उन को भी झुक कर सलाम कर लेना