ग़म के साथ ख़ुशी भी देखो / कमलेश द्विवेदी
माना ग़म तो लाखों हैं पर ग़म के साथ ख़ुशी भी देखो।
फूल अगर मुरझाता देखो खिलती हुई कली भी देखो।
तट तो तट होता है उसका
बहने से क्या लेना-देना।
लेकिन उसके साथ नदी है
सदा बहे जो, कभी रुके ना।
जब भी ठहरे तट को देखो बहती हुई नदी भी देखो।
माना ग़म तो लाखों हैं पर ग़म के साथ ख़ुशी भी देखो।
बाढ़ कभी भूकंप कभी तो
कभी कहीं सूखा पड़ जाये।
पर विनाश की लीलाओं से
क्या विकास का क्रम रुक पाये।
सिर्फ सुनामी की चर्चा क्यों, बसती नयी बस्ती भी देखो
माना ग़म तो लाखों हैं पर ग़म के साथ ख़ुशी भी देखो।
बन्धन में रहने वाला भी
कभी मुक्ति से जुड़ सकता है।
जैसे पिंजरे का पंछी कल
नीलगगन में उड़ सकता है।
क्यों बस पिंजरा देख रहे हो तुम उड़ता पंछी भी देखो।
माना ग़म तो लाखों हैं पर ग़म के साथ ख़ुशी भी देखो।