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ग़म से भीगे हुए नग़मात कहाँ से लाऊँ / 'शेवन' बिजनौरी

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ग़म से भीगे हुए नग़मात कहाँ से लाऊँ
दर्द में डूबी हुई बात कहाँ से लाऊँ

जिन में यादों को तेरी झोंक दूँ जलने के लिए
वो सुलगते हुए दिन रात कहाँ से लाऊँ

जो पसंद आए तुझे ख़ून-ए-जिगर के बदले
सोने चाँदी की वो सौग़ात कहाँ से लाऊँ

दिल भी तिश्‍ना है मेरी रूह भी तिश्‍ना है मगर
तेरे जल्वों की वो बरसात कहाँ से लाऊँ

तेरे वादे तो तुझे याद दिलाएँ ज़ालिम
हाए माज़ी के वो लम्हात कहाँ से लाऊँ

जब मेरे भाग में तन्हाई का अँधियारा है
फिर भला प्रेम की प्रभात कहाँ से लाऊँ

दिल मेरा रोता है तन्हाई में पहरों ‘शेवन’
वो बुज़र्गो की हिदायत कहाँ से लाऊँ