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ग़रीबी की गंध-2 / इदरीस मौहम्मद तैयब
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ग़रीबी की गंध तब पुलों की ओर निकल भागती है
धरती की मिट्टी में घुल-मिल जाने को
ग़रीबी अपने आप को सूँघ सकती है
बड़ी हो सकती है
दादी अम्मा बन सकती है
शान्ति से, बिना किसी नफ़रत के
सुल्तानों के क़िलों को देखती है
और फिर किसी भी ईश्वर से
प्रार्थना करती है
उसका तहे-दिल से शुक्रिया अदा करती है
जब ग़रीबी, एक टुकड़ा रोटी के लिए
एक मीठी नींद के लिए
उसके भूखे बच्चों को छूती है
अँग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस