भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़रीबों का बज़ट है या कसाई का गंडासा है / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
ग़रीबों का बज़ट है या कसाई का गंडासा है ।
सभी की गर्दनें काटीं हताशा ही हताशा है ।।
बड़ी उम्मीद थी इनसे मिलेंगी सब्ज़ सुविधाएँ
मगर इन जेबकतरों से मिली ख़ाली निराशा है ।
रियायत दी गई सारी बड़े उद्योगपतियों को,
बज़ट में प्यार उन पर ही लुटाया बेतहाशा है ।
किसानों और श्रमिकों ने दिया था वोट भूले तुम
नहीं उनको मिला कुछ भी अँधेरा है कुहासा है ।
ये सारे मध्यवर्गी आज अपना धुन रहे हैं सर
लिखी है नाम पर उनके दिलासा ही दिलासा है ।
हमारे वोट से जीते खड़े हो उनके पाले में
हाँ मोदी जी बज़ट इस बात का करता खुलासा है ।
1-03-2015