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ग़रीबों को बर्बाद करते रहे / मेला राम 'वफ़ा'

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ग़रीबों कप बर्बाद करते रहे
यही ये परी-ज़ाद करते रहे

न देखा सितम-गर ने मुंह फिर कर
लबे-जख़्म फ़रयाद करते रहे

हुए लुत्फ के भी न ममनून ग़ैर
हमीं शुक्रे-बेदाद करते रहे

निगाहों से हसरत बरसती रही
हम आंखों से फ़रयाद करते रहे

रहे ख़ुद-फरामोश हम तो , मगर
तुम्हें रॉड इन याद करते रहे

बसर ज़िन्दगी क्या हुई ऐ 'वफ़ा'
बसर शाद-ओ-नाशाद करते रहे