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ग़रीब और पोस्टर / बुद्धिलाल पाल
Kavita Kosh से
ख़ाली दीवार पर पोस्टर की तरह चिपके
अहा! मेरे दोस्त
तुम बहुत अच्छे लगते हो
मील के पत्थर पर आज का समय
कील ठोंकता अट्टहास करता है
फिर एक ईसा ने आज दम तोड़ा है
दूर कहीं एक तारा टूटा है
विद्युत से घर्षण फिर एक चिंगारी शोला बन
जाती है
जब भूख धरोहर में मिलती है
तो आश्चासन भी खाली नारों में ही मिलते हैं
और हर बार नारों में तुम
दीवार पर पोस्टर की तरह चिपका दिए जाते हो
अहा! मेरे दोस्त तुम बहुत अच्छे लगते हो!