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ग़ालिब की मज़ार / जयंत परमार
Kavita Kosh से
राग दरबारी में
शाम सायाफिगन
काले बादल पे तारा
शफ़क़ सुर्ख़-रू
गुनगुनाती रदीफ़ों के
जाम-ओ-सुबू
महफ़िले-शब चराग़ाँ
फ़क़ीरों की धुन
ये ज़मीं-आसमाँ
काफ़ियों के नुजूम
मेरा बर्गे-दिल
सो रहा है यहाँ
आख़िर नींद में
रेख़्ता के हसीं
पेड़ की छाँव में
चाँद के गाँव में