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ग़ुलाब / फ़रीदे हसनज़ादे मोस्ताफ़ावी
Kavita Kosh से
आदमी
जब सोए
तो लाश जैसा होता है।
बतियाए
तो मधुमक्खी जैसा।
जब खाए
तो मेमने सा दिखता है।
जब यात्रा पर निकले
तो लगता है घोड़े जैसा।
जब कभी वह सटकर खड़ा हो खिड़की से
और बारिश की दुआएँ करे...
या जब वह देखे कोई लाल ग़ुलाब
और मचल जाए उसका मन
थमाने को वह लाल ग़ुलाब किसी के हाथों में
केवल तभी होता है
वह
आदमी।
अंग्रेज़ी से अनुवाद: यादवेन्द्र पांडे