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गाँठ भी अब फैशन हो गया है / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय
Kavita Kosh से
बहुत बार टूटता है दिल
टूटता है मन
जुड़ने की लालसा में
जन से
उलझता है जीवन
उखड़ने लगता है
सब कुछ
कुछ यथावत नहीं रह जाता
दिमाग खुरापात करने लगता है
हृदय में कशमकश होती है
सोचता हूँ जुड़ जाऊं
टूटता हूँ बार-बार
हजार बार कोशिश विफल होती है
गाँठ पड़ते हैं
सम्बन्धों में कहा था रहीम ने कभी
जो टूटते हैं एक बार
अब कोशिश होती नहीं
सोचने से पहले
कल्पना की शक्ति भी गायब हो जाती है
सामने वाला हँसता है
ठहाका मारकर
कि गाँठ भी अब फैशन हो गया है
सोचता हूँ तो कठोर नहीं
टूटता जाता हूँ और अधिक
और अधिक होता जाता हूँ कमजोर
चिंता नहीं होती जो अलग होते हैं
ख़ुशी होती है कि
रवायत वही है जो पहले थी