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गाँव की ख़ुशियाँ / विश्वासी एक्का

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कानों में तरकी
हाथों में बेरा
गले में हँसुली
माथे पर टिकुली
पैरों में घुँघरू
एड़ी तक धोती
कैसा समन्वय स्त्री और पुरुष
का
अद्धनारीश्वर की कल्पना ।

हाथों में डण्डा ले
घूम-घूम लचकती कमर
नृत्य करते गाँव के रसिया नचकार
बनाते मानव-शृंखला
आसमान छूने की चाह ।

जब नाचते हैं झूम-झूम
मान्दर की थाप पर
बिसर जाते दुख दर्द ।

’कठबिलवा’ की सूरत
बच्चों का रोमांच
झुण्ड में क्या बच्चे, क्या बूढ़े
ख़ुश होते रीझते, बतियाते
दुख थोड़े, सुख ज़्यादा
जीवन जीते ऐसे ही
बटोरते, गठिइयाते
ख़ुशियाँ धोती की छोर ।