गाँव की ज़मीन / बाल गंगाधर 'बागी'
भैंस जब डकरती है
ठाकुर की भौह तनती है
गाय जब चिल्लाती है
तो मूंछ अकड़ जाती है
उठता हूँ दौड़कर भैंस पकड़ लाता हूँ
गाय को खूंटे में बांध कर खिलाता हूँ
ठाकुर हंसता है मूंछों को ताव दे
मेरी बेगारी को लाचारी का घाव दे
जानवर की सेवा में ज़िन्दगी कटती है
घर खेत खलिहानांे में ड्यूटी रहती है
बैल व कुदाल संग जोत जकड़ता हूँ
फसल को उठाकर अनाज पहुंचाता हूँ
नहलाया धुलाया जानवर खिलाया
ठण्डी व गर्मी बरसात का जिलाया
गेहूँ का गट्ठर-गट्ठर पिसाता हूँ
रोज-रोज गाली ठाकुर की लात खाता हूँ
मेरी ज़मीनों पर जमींदार हैं वह
मुझसे सुदखोरी से मालदार हैं वह
किसी तरह कर्ज के जाल में फंसाकर
मेरी बेटी बहू पर शैतान हैं वह
खेत हल बैल सब सूद पर चले गये
औरत के गहने तिजोरी से उठ गये
रेहन पर रेहन रखकर लेते रहे
एक-एक कर हाथ से निकलते गये
कोई नहीं साथ दिया दलित जान करके
अपनों में अकेले रहे सर पकड़ के
आकर कभी कोई गालियां सुनाता है
दलित अछूत कह काम पे बुलाता है