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गाँव की सड़क / खुली आँखें खुले डैने / केदारनाथ अग्रवाल
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गाँव की सड़क
शहर को जाती है,
शहर छोड़कर
जब गाँव
वापस आती है
तब भी
गाँव रहता है वही गाँव,
काँव-काँव करते कौओं का गाँव।
रचनाकाल: १०-०१-१९८०