गरमी के दिनों में
बचपन में
माँ पंखा झलती थी
राजा-महाराओं
और परियों की कहानियाँ
सुनाया करती थी
तब गाँव में बिजली नहीं थी
अब शहर में मैं ख़ुद पंखा झलता हूँ
संघर्ष से जूझते लोगों की कहानियाँ पढ़ता हूँ
पंखा झलती माँ बराबर याद आती है
और शहर में बिजली है