Last modified on 12 अगस्त 2020, at 18:34

गाँव को देखा / मुदित श्रीवास्तव

हमने तुमने
गाँव को देखा
हवाओं के सैकड़ों थपेड़े देखे
उड़ते हुए मकां
तैरते हुए घर देखे
कपकपाते हुए हाथ
लड़खड़ाते हुए पाँव को देखा
हमने तुमने
गाँव को देखा
 आंखों में एक उम्र देखी
आस देखी, प्यास देखी
बीहड़ो के राज़ देखे
कांटो की पत्तियाँ, काँटों के फूल
काँटों की छांव को देखा
हमने तुमने
गाँव को देखा!
सूखे रास्ते देखे
सूखे जलकुंड
सूखे पेड़ों के काँटे देखे
कभी न बहने वाली नदी
कभी न बनने वाली नांव को देखा
हमने तुमने गाँव को देखा।