गाँव था स्वर्ग / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
181
आँधी उमड़ी
गरीब का छप्पर
दूर ले उड़ी ।
182
गाँव था स्वर्ग
आकरके चुनाव
विष बो गया ।
183
आज का गाँव
युवा हुए लापता
झींकते बूढ़े ।
184
हुक्का हो गया
सन्नाटे डूबी शाम
रोती चौपाल ।
185
गाँव भागता
भोर से साँझ तक
शहर हँसा ।
186
खिली कपास
दूर तक खेतों में
बिखरा हास।
187
ये गाँव वाले
भोले,बात बात में ।
भाले निकालें ।
188
तुन्तुन गाए
पुम्बे की धुनकी ने
रूई है धुनी।
189
राजा से खड़े
पुआल के कूँदड़े
हाथी से लगे।
190
उपले -जड़ा
बिटौड़ा है सजाया
फूँस से मढ़ा ।
191
चर्खी चलाई
कपास ओटकर
रूई निकाली।
192
भूसा था ढेर
भुसियारे में भरा
चारा ज़रूरी।
193
ज़िद्दी बहना
प्राणों से रही प्यारी
गुम हो गई ।
194
ढूँढ़े जंगल
नगर खोज लिये
कूछ न मिला ।
195
सदा मुस्कान
देती जीवनदान
मन-पावन ।