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गाँव में / रंजना गुप्ता
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आम बौराए झरी है
नीम मेरे गाँव में..
फूटता सेमल लिपटता
राह चलते पाँव में...
पात पीपल के पड़े पीले
हरे फिर हो गये..
और पाकड़ धूपिया
संवाद तन में बो गये...
चुभ गया काँटा करौंदे का
अभी बस पाँव में ...
पक गये फल फूल
गूलर बेर के भी केर के..
मद भरा महुआ टपकता
है हवा को टेर के ..
मंजरी महकी है बाग़ों की
गमकती छाँव में..
ओढ़ती अनगढ़ नियति
मिट्टी सनी पगडंडियाँ...
द्वार से चौबार तक
बस नेह की हैं मंडियाँ..
मोर का नर्तन परखती
मोरनी हर ठाँव में ...