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गायें हम / विमल राजस्थानी

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गायें हम गान, मौन तोड़ो री तान
विश्रृंखल ध्यान, शनैः सुलग रहे प्राण

व्योम तलक् भूमि का प्रसार
सिद्ध करे पावस रसधार
बूँदों में सिन्धु वर्तमान
सप्त सिन्धु बूँद का विधान

छोर ही अछोर का न छोर
साँझ में विहान ही विभोर
रैन दिवस का अदृश्य रूप
रूप ही अरूप का स्वरूप
पंछियों के पंख ही उड़ान
जीवन ही मृत्यु का विहान
सृष्टि साँस-रज्जु से बँधी
तारों पर उँगलियाँ सधीं
वीणा का मर्म सप्तलोक
धारा का वेग सके रोक-
जो भी वह जीव ही महान्
गायें हम गान