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गाये जोगन / अनिता मंडा
Kavita Kosh से
46
नूर का पर्व
धुला है अंतर्मन
बाँट उजाले
47
नाचा जो मोर
रंगों की फुलझड़ी
बिखर पड़ी।
48
जूड़े में फूल
अनमनी तितली
दूर से उड़ी।
49
सिरजे कवि
अनुभूति जल से
भावों का जग
50
नेह प्रिय का
हिचकियों से भर
छलक रहा
51
जीवन -राग
आरोह-अवरोह
साधते बीते।
52
चोंच मारके
पूछे कठफोड़वा
घर बना लूँ।
53
मीठी है पीर
प्रीत-कठफोड़वा
दिल में बसा।
54
स्मृति वन में
मन हिरणा डोले
क्या भेद खोले
55
भूलभुलैया
हैं मन की गलियाँ
खोए से हम।
56
गाये जोगन
मन इकतारा ले
प्रेम की धुन
57
खेलें लहरें
सूरज की गेंद से
ढलती साँझ
58
बोली चिड़िया-
लौट आया जीवन
सूने घर में।
59
थार ने ओढ़ा
चाँदनी का दुपट्टा
शीत रजनी।
60
लिखे सावन
हरियाली दास्तान
पढ़े आसमाँ