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गाय की घंटी / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

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यह घंटी जब बजती है
सजग नहीं होते देवता
काँपती नहीं मंदिर की दीवारें
खुलता नहीं मुँह दान पेटी का

थोड़ी-थोड़ी हरी कच्च घास
दूध बनने की उम्मीद में
जड़ों से उखड़ने लगती है

...और गीली मिट्टी में धँसते खुर
मछलियों के जन्म के लिए
बनाते हैं एक घर पानी का

यह घंटी जब बजती है।