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गार्गी उवाच / कविता वाचक्नवी

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गार्गी उवाच


ऋषि!
तुम भले ही हाँक ले जाओ सब गाय
और भले ही, तत्वदर्शी होने का
अहं तुम्हारा
रहे जीवित
किन्तु
‘आकाश’ में गूँजते
‘तरंगों’ में लहराते
‘विद्युत’-से कौंधते
मेरे प्रश्न तो सुनते जाओ
‘शास्त्रार्थ’ से तुम न दे सकोगे
इनके उत्तर
छूट जाएगा सारा दम्भ।
छोड़ दो गउएँ
मूक प्राणी हैं.....
कुछ न कहेंगी
हकाल ले जाओ भले,
किन्तु मैं
रोकती हूँ तुम्हारा मार्ग,

ठहरो.........!!
प्रश्न तो सुनो, याज्ञवल्क्य !