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गालां माथै धर हाथ सोच भायला / सांवर दइया

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गालां माथै धर हाथ सोच भायला
सुख-दड़ी लेयग्यो कुण बोच भायला

आ पून पम्पोळती अर हिलता सिट्टा
कठै गयी बा लचक बो लोच भायला

माथै आ पड़ी है झेल्यां ई सरसी
क्यूं होवै इतरो होच-पोच भायला

सागै बहीर हुवणिया आ कह खिसक्या
म्हांरै पग में आयगी मोच भायला

तूं है, तावड़ो है, धोरा है, देख लै
हां, टुर परो, अब क्यां रो सोच भायला