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गालियाँ, गोलियाँ सब ओर हमेशा की तरह / किशन सरोज
Kavita Kosh से
गालियाँ, गोलियाँ सब ओर हमेशा की तरह,
और चुपचाप हैं कमज़ोर हमेशा की तरह ।
काली मारूति में उठा ले गए फिर एक लड़की,
झुग्गियों में, लो मचा शोर हमेशा की तरह ।
गांव जा पाऊँ तो पूछूँ कि छत्तों पर अब भी,
नाचने आते हैं क्या मोर हमेशा की तरह ।
बेटियों से भी हमें आँख मिलाने की न ताब,
दिल में बैठा है कोई चोर हमेशा की तरह ।
कैसी घड़ियों में लड़ी प्रीति तुम्हारी ऐ किशन !
आज तक गीले हैं दृग-कोर हमेशा की तरह ।