गाहे-गाहे कोई इल्ज़ाम   भी आ जाता है
पीने वालों  में   मेरा नाम  भी आ जाता है
तशनगी बढ़ती  है  जिस वक्त मेरे होठों पर
रूबरू   साक़ी-ए-गुलफ़ाम   भी आ जाता है
इन्तज़ार उसका किया करती हैं अकसर रातें
लौटकर घर वो  सरे-शाम  भी आ जाता है
आपके  जाने से  होती तो है तक़लीफ़ बहुत
आपके  आने से आराम  भी  आ जाता है
ख़ोटे  सिक्के  को हिक़ारत से न देख़ो यारो
ख़ोटा सिक्का ही सही काम भी आ जाता है
उसकी ज़ानिब से न मायूस हो इस दर्ज़ा ‘विजय’
कोई  तोहफ़ा कोई  इनआम भी आ जाता  है