भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गिंया गोंदली डुहरू में / पीसी लाल यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टेड़ा टेड़ पलो ले पानी, गिंया गोंदली डुहरू में
दू दिन के दूधरू जुवानी...

खेंड़हा खोंटे चंेच खोंटे, भाजी खोटनी।
बबा गड़गे बँभूर कांटा खोजत हवे लोचनी।

डोकरी के गोठ आनी-बानी

आमा झरे, जाम फरे, फरे हे अम्मट करौंदा,
उवत के बेरा बूड़त होगे, बाट जोहत घटौंदा।

पसर भर पिया दे पानी,

कोचई खने उबका खने, खने जिमी कांदा,
करिया-गोरिया सबो ल, घेरे मया के फांदा।

ये दुनिया हे आनी-जानी

करेला फूले, बरबट्टी झूले, झूले मीठ कुंदरू।
मगन मन गोरी नाचे, बाजे पाँव के घुँघरू।

संगी सुना दे गुरतुर बानी