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गिटार / निकोलस गियेन / सुरेश सलिल
Kavita Kosh से
पूरे चाँद की एक रात
वे गिटारों का शिकार करने गए
और यह एक लेकर लौटे :
पीतवर्ण, सुरुचिपूर्ण, सुडौल और
गूढ़ साँवली आँखों व रंध्रयुक्त काठ की कटि से सुशोभित ।
युवा है अभी, मुश्किल से उड़ पाती है
लेकिन दूसरे पिंजरों में से साँगों और दोहरों की
कोई अनुगूँज सुनती है, तो
पहले से ही गुनगुनाने लगती है ।
दूसरे पिंजरों में साँग और अकेले दोहरे ।
इसके पिंजरे में लटकती तख़्ती पर लिखा है :
"सावधानी बरतें, यह सपने देखती है ।"
1959
टिप्पणी :
इस कविता में गिटार को कवि ने स्त्रीवाची बना दिया है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल