भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गिटार / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शुरू होता है
गिटार का रुदन ।

चकनाचूर हैं
भोर के प्याले ।

शुरू होता है
गिटार का रुदन ।

व्यर्थ है
उसे चुप कराना ।

असम्भव
उसे चुप कराना ।

वह रोता जाता है
बोझिल
पानी रोता है
और बर्फ़ के खेतों पर
रोती जाती है हवा ।

असम्भव
उसे चुप कराना ।

वह रोता है
सुदूर चीज़ों के वास्ते ।

गर्म दक्षिणी रेत मरा करती है
कैमेलिया के सफ़ेद फूलों की चाह में ।

तीर रोता है अपने लक्ष्य के लिए
शाम भोर के लिए
और टहनी पर
वह पहली मृत चिड़िया ।

ओ गिटार!
ओ पाँच तलवारों से
जानलेवा बींधे हुए हृदय !