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गिनती / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय
Kavita Kosh से
तुम मुझे किसी फूल का नाम तो बताओ-
मैं बता दूँगा
उसकी किस्मत में क्या कुछ लिखा है।
ख़ून की तरह सुर्ख
आग-सी बेचैन
और निशान-सी फड़फड़ाती
जिसकी भिंची मुट्ठियों की
पंखुरियों में बन्द है
एक बेहद खूबसूरत भूखी शपथ।
मैं देख रहा हूँ-
रास्ते में क़तार-दर-क़तार लाठियों की चाँचर
दुनाली से छिटकती गोला-बारी
मुखाग्नि;
और फिर आँसू गैस की तरह
धुआँ उगलती काली गाड़ी
हो गयी है आसमान में ग़ायब।
मैं देख रहा हूँ-
एक हाथ से दूसरे हाथ में
घूम रहा है एक काग़जी फर्रा-
जिस पर नाम हैं-
मृतकों के, घायलों के
और लापता लोगों के।
दिन के उजाले में
ज़मीन पर पालथी मारे बैठे लोगों में
पता नहीं कौन आ रहे हैं हाँकते
और एक दूसरे से मिलाते जा रहे हैं लगातार
अपने-अपने आँकड़े।