भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गिरजे के सामने एक बुढ़िया / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
रविवार सुबह । गिरजे के सामने एक बेंच पर
ग़रीब तबके की एक बुढ़िया ।
अन्दर ऑर्गन का संगीत । बुढ़िया का ध्यान चिड़ियों के चहचहाने पर ।
उसकी बहनें माँग रही हैं ईश्वर का आशीर्वाद । वह इकट्ठा कर रही है
धूप की कुछ गर्म किरणें, जैसे थकी-हारी बटोरने वाली
फ़सल कटने के बाद बचा अनाज बटोरती है ।
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य