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(वर्षा-वर्णन 5)
फिरि फिरि झूलहिं भामिनी अपनी अपनी बार |
बिबुध-बिमान थकित भए देखत चरित अपार ||
बरषि सुमन हरषहिं उर, बरनहिं हरगुन-गाथ |
पुनि पुनि प्रभुहि प्रसंसहीं जय जय जानकिनाथ ||
जय जानकीपति बिसद कीरति सकल-लोक-मलापहा |
सुरबधू देहिं असीस, चिरजिव राम, सुख-सम्पति महा ||
पावस समय कछु अवध बरनत सुनि अघौघ नसावहीं |
रघुबीरके गुनगन नवल नित दास तुलसी गावहीं ||