(7)
	राम राजराजमौलि मुनिबर-मन-हरन, सरन-
	लायक, सुखदायक रघुनायक देखौ री |
	लोक-लोचनाभिराम, नीलमनि-तमाल-स्याम,
	रूप-सील-धाम, अंग छबि अनङ्ग को री ?||
	भ्राजत सिर मुकुट पुरट-निरमित मनि रचित चारु,
	कुञ्चित कच रुचिर परम, सोभा नहि थोरी |
	मनहुँ चञ्चरीक-पुञ्ज कञ्जबृन्द प्रीति लागि 
	गुञ्जत कल गान तान दिनमनि रिझयो री ||
	अरुनकञ्ज-दल-बिसाल लोचन, भ्रू-तिलकभाल,
	मण्डित स्रुति कुण्डल बर सुन्दरतर जोरी |
	मनहुँ सम्बरारि मारि, ललित मकर-जुग बिचारि,
	दीन्हें ससिकहँ पुरारि भ्राजत दुहुँ ओरी ||
	सुन्दर नासा-कपोल, चिबुक, अधर अरुन, बोल
	मधुर, दसन राजत जब चितवत मुख मोरी |
	कञ्ज-कोस भीतर जनु कञ्जराज-सिखर-निकर,
	रुचिर रचित बिधि बिचित्र तड़ित-रङ्ग-बोरी ||
	कम्बुकण्ठ उर बिसाल तुलसिका नवीन माल,
	मधुकर बर-बास-बिबस, उपमा सुनु सो री |
	जनु कलिन्दजा सुनील सैलतें धसी समीप,
	कन्द-बृन्द बरसत छबि मधुर घोरि घोरी ||
	निरमल अति पीत चैल, दामिनि जनु जलद नील
	राखी निज सोभाहित बिपुल बिधि निहोरी |
	नयनन्हिको फल बिसेष ब्रह्म अगुन सगुन बेष,
	निरखहु तजि पलक, सफल जीवन लेखौ री ||
	सुन्दर सीतासमेत सोभित करुनानिकेत,
	सेवक सुख देत, लेत चितवत चित चोरी |
	बरनत यह अमित रूप थकित निगम-नागभूप,
	तुलसिदास छबि बिलोकि सारद भै भोरी ||