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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 21 से 30 तक/ पृष्ठ 1

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(21) (वसन्त-विहार 1)
राग गौरी

अवध नगर अति सुन्दर बर सरिताके तीर |
नीति-निपुन नर-दिय सबहिं धरम-धुरन्धर, धीर ||

सकल रितुन्ह सुखदायक, तामहँ अधिक बसन्त |
भूप-मौलि-मनिजहँ बस नृपति जानकीकन्त ||

बन उपबन नव किसलय, कुसुमित नाना रङ्ग |
बोलत मधुर मुखर खग पिकबर, गुञ्जत भृङ्ग ||

समय बिचारि कृपानिधि, देखि द्वार अति भीर |
खेलहु मुदित नारि-नर, बिहँसि कहेउ रघुबीर ||

नगर-नारि-नर हरषित सब चले खेलन फागु |
देखि राम छबि अतुलित उमगत उर अनुराग ||

स्याम-तमाल-जलदतनु निरमल पीत दुकूल |
अरुन-कञ्ज-दल-लोचन सदा दास अनुकूल ||

सिर किरीट स्रुति कुण्डल, तिलक मनोहर भाल|
कुञ्चित केस, कुटिल भ्रू, चितवनि भगत-कृपाल ||

कल कपोल, सुक नासिक, ललित अधर द्विज जोति |
अरुन कञ्ज महँ जनु जुग पाँति रुचिर गज-मोति ||

बर दर-ग्रीव, अमितबल बाहु सुपीन बिसाल |
कङ्कन-हार मनोहर, उरसि लसति बनमाल ||

उर भृगु-चरन बिराजत, द्विज-प्रिय चरित पुनीत |
भगत हेतु नर बिग्रह सुरबर गुन-गोतीत ||

उदर त्रिरेख मनोहर, सुन्दर नाभि गँभीर |
हाटक-घटित, जटित मनि कटितट रट मञ्जीर ||

उरु अरु जानु पीन, मृदु, मरकत खम्भ समान |
नूपुर मुनि-मन मोहत, करत सुकोमन गान ||